जख्म गैरो ने नहीं अपनो ने दिए है
किस्सा क्या सुनाऊ बेवफाई का
आँसूओ का तोहफा मिला है वफ़ा के बदले,
खंजर बन कर चुभ रही है तेरी यादे
नासूर बन गयी है तेरी मुहब्बत
ज़ख्म ही ज़ख्म दे दिया तुमने मेरी मुहब्बत के बदले,
ताश के पत्तो सा तोड़ा तुमने मेरे दिल को
बिखेर दिया मेरे सपनो के महल को
हक़ीक़त दिखा दी तुमने मुझे मेरे ख्वाब के बदले,
कितनी ख़ामोशी से प्यार का क़त्ल किया तुमने
न तो खुद कुछ कहा न मुझे कुछ कहने दिया
दे दी खमोशी तुमने मुझे मेरे अल्फ़ाज़ के बदले...... |