मैं और तुम बस यही है दुनिया
दो औंस की बूंदे थे
मिलकर एक हो गए मैं और तुम
एक रास्ते के दो मुसाफिर
मंजिल पर आकर मिले
जिंदगी जिधर ले गयी चल दिए मैं और तुम
दुःख का सागर हो या ग़म का दरिया
जो भी मिला सह गए मैं और तुम
ख्वाबों को सजाया मिलकर
उसको मिलकर जी गए मैं और तुम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें