ये कैसा वक्त आया हैं
लिखने बैठती हूँ तुम्हे सोचकर
पाती हूँ की तुम तो हो ही नहीं
कही दूर एक खोये लम्हे की तरह
मेरे समय से बिलकुल परे हो
जो अब नजर भी नहीं आता है
अब सिर्फ यादें है और कुछ एहसास हैं
कितना सूंदर सफर था जब तुम साथ थे
लगता था कभी न मिटने वाली
एक कहानी बन गए हो तुम
तेरी मासूम सी निगाहों को
मन करता था बस देखती रहूँ
चंचल सा तेरा मन
बस तुझे निहारती रहूँ ....लेकिन
खामोश रही मैं की कभी तो
समझो मेरी ख़ामोशी को
कभी तो पढ़ो मेरी आँखों को
मेरा बेदाग मन बस तुम्हे चाहता रहा
तुम्हे देखता रहा, तुम्हे पूजता रहा
मगर तुम पड़े रहे एक खाली पन्ने की तरह
जिस पर चाह कर भी मैं कुछ न लिख सकी
मेरे शब्द खाली रह गए तेरी चाहत में
अब तो सिर्फ तेरी यादे है और
कुछ एहसास है जो मेरे साथ है
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