तुम्हे पाने की चाहत
मुझे तुम्हे पाने की चाहत नहीं
मुझे तुमसे मिलने
की
भी
चाहत
नहीं
तुम दूर रहो
या
पास
अब
कोई
फर्क
नहीं
पड़ता
क्योकि मैं छोड़
चुकी
तुम
पर
अपना
हक़
जाताना
गलती की मैंने
जो
जज्बातो को
जाहिर
किया
गलती की मैंने
जो
तुम
पर
अपना
हक़
जताया
अब कुछ कहने
का
मन
नहीं
करता
कोई शिकायत भी
नहीं
है
तुमसे
टूट चुकी हूँ मैं अब अंदर तक
अब और टूटना
नहीं
चाहती
तुम्हे पाने की
चाहत
नहीं
लेकिन
तुम्हे खोना भी
नहीं
चाहती
आँसू भी सुख
गए
हैं मेरे
अब मैं और
रोना
भी नहीं चाहती
नहीं करना चाहती
हूँ
मैं
तुम्हारा सामना
नहीं चाहती की
तुम
देखो
मुझे
टूटते
हुए
बिखरते हुए ,क्योकि
मैं
तुम
पर
कोई इलज़ाम नहीं
देना
चाहती
... क्योकि
तुम मेरी चाहत
हो
मेरी
मुहब्बत हो
मेरी जिंदगी हो
मेरी
हसरत
हो
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