जानती हूँ की तुमसे मिलना नही है
फिर भी तुमसे मिलने की आस क्यूं है
मालूम है की तुम मेरे नही हो
फिर तुम्हे अपनाने की प्यास क्यूं है
मुझे पता है की मेरी लकीरो में तुम नही हो
फिर मुझे ये किस्मत का फैसला मंजूर क्यूं नहीं है
जो भी लम्हा साथ बिताये थे हमने
वो वापस नहीं आएंगे ये पता है मुझे
फिर भी मुझे उन लम्हो का इंतज़ार क्यूं है
जब भी तुम रूठते तो रो पड़ती थी मैं
आज तुम्हारे न होने पर आँखे सुखी क्यूं हैँ
खाया था कसम साथ चलने का हम दोनों ने
फिर मेरा सफर आज तन्हा क्यूं है
तुम्हारी ख़ुशी थी इसलिए
जुदा हो गयी
लेकिन ये तो बताओ मैं खुद से जुदा क्यूं हूँ
हार गई मैं सब कुछ इस खेल में तो
तुम्हे फिर से पाकर जितने का सबब क्यूं है
चलो मान लिया रास्ते अलग है हमारे
मगर आज भी इस दिल तेरी ही हुकूमत क्यूं है
भूल जाओ मुझे और भूलने दो मुझे
तुन्हें मुझे याद करने की जरूरत क्यूं है ।