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हम बड़े हमेशा छोटी -छोटी बात पर घबरा जाते है ,और दुखी होकर निराश हो जाते है | क्योकि हमे अपने जीवन
मे हमेशा कुछ ज्यादा ही पाने की उम्मीद होती है | कुछ ज्यादा ही चाहत होती है | और जब वो उम्मीद पूरी नहीं
होती है ,वो चाहत पूरी नहीं होती है तो हमे अवसाद मे चले जाते है |
लेकिन अगर हम वही दूसरी तरफ अपने बच्चो को देखे तो हमे जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है | हम सिर्फ अपने बच्चो से सीख सकते है कि हमे सच्ची खुशी कहा मिल सकती है |
जब आप अपने बच्चे को एक छोटा सा कोई भी खिलौना लाकर देते है तो उस खिलौने मे उसकी पूरी दुनिया
सिमट जाती है | दिन और रात वो उसी खिलौने से खेलता है ,उसी के साथ जीता है | एक बच्चे के लिए ये मायने नहीं रखता कि वो खिलौना कितने का है या कितना बड़ा है , वो सिर्फ उसको एक खिलौना मानकर उसके साथ खेलता है |
लेकिन दूसरी तरफ हम बड़े ईगो मे परेशान रहते है कि हमारे पास ये नहीं है , वो नहीं है |
हम कभी भी उस चीज को देखकर खुश नहीं होते है ,जो हमारे पास है बल्कि उस चीज से दुखी रहते है जो हमारे
पास नहीं है |जो नहीं है उसीके बारे मे सोचते रहते है |इस तरह से जो वस्तु हमारे पास है हम उसका एंजॉय नहीं
कर पाते है | और निराशा के साथ जीते रहते है |
आपका स्कूल जाने वाला बच्चा ... ,जब उसको स्कूल के टीचर से एक छोटा सा स्टार मिल जाता है उसकी छोटी सी मेहनत पर ......... तो दोस्तो क्या आपने अपने उस बच्चे के चेहरे की खुशी देखी है कि वो कितना
खुश होता है | हमारे लिए और उस टीचर के लिए उस स्टार की कोई किमत नहीं है ,लेकिन उस बच्चे के लिए
क्या किमत है ये आपको उससे पूछने की कोई जरूरत नहीं है , आप सिर्फ उसके चेहरे की खुशी से अंदाजा लगा
लीजिये उस स्टार की किमत की ............| जैसे सारे जहा की खुशी उसने पा ली हो वो इस कदर खुश हो जाता है| |
बच्चे होते ही है मासूम और निश्चल , उनके लिए छोटी -छोटी खुशिया बहुत मायने करती है |
लेकिन हमे हमेशा जीवन से कुछ ज्यादा चाहिए |
इसीलिए मेरे दोस्तो, हमे हमेशा अपने बच्चो से ही सीखते रहना चाहिए | उनकी तरह हमे भी छोटी -छोटी
खुशियो मे अपनी बड़ी खुशी देखनी चाहिए | तभी हमे अपनी सच्ची खुशी का एहसास होगा और हम अपनी
जीवन के सही मायने को देख सकेंगे और भरपूर आनंद ले सकेंगे |
बस करना ये है की हमे अपने बच्चो से ही हमेशा सीखते रहना है ............... |
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