हाँ मैं खामोश हूँ....
क्योकि थक चुकी हूँ मैं दुनिया के इस भीड़ से
इस दुनिया दारी से
कुछ समझदार रिश्तों से कुछ नासमझ रिश्तेदारी से
इस भागम भाग भरी जिंदगी से
इसीलिए मैं खामोश हूँ.....
सब भाग रहे है कहा भाग रहे है क्यों भाग रहे है
कोई नहीं जनता कोई नहीं समझता
और समझना भी नहीं चाहता
बस भाग रहे है भागे जा रहे है
इसलिए मैं खामोश हूँ... ...
हर रिश्ते टूट रहे है एक दूसरे से दूर हो रहे है
सब कुछ है हमारे पास बस वक्त नहीं है
किसी के पास किसी के लिए
रिश्तों में गाँठ पड़ती जा रही है
जो खुल नहीं सकती बल्कि वक्त के साथ
और मजबूत होती जा रही है,
इसलिए मैं खामोश हूँ.....
हाँ मैं खामोश हूँ..... और खामोश ही रहना चाहती हूँ
क्योकि मैं खुद के साथ जीना चाहती हूँ
खुद से दोस्ती करना चाहती हूँ
खुद से बाते करना चाहती हूँ
खुद के साथ दो पल गुजरना चाहती हूँ
इसीलिए मैं खामोश हूँ...|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें