मेरी बिंदिया फिर चमक उठी थी
तूने तो सिर्फ दस्तक दी थी
साँसे कुछ थमी हुई थी
फिर क्यों मैं यु ही चहक उठी थी
तुलसी का बिरवा आँगन में
दिए जलाकर ड्योढ़ी पर
तेरी यादो में खोयी थी
फिर सहसा क्यों ठिठक पड़ी थी
इतना प्यार समेटे कब से
राह में आँखे बिछी हुई थी
कुछ आंसू मुस्कान में लिपटे
आशा गहरी मिलन की
पाकर अपने प्रीतम को
अब दिल की बगिया महक उठी थी
मेरी बिंदिया फिर चमक उठी थी
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