उलझा कर रखा है
तुमने और जिन्दगी ने
कौन हो तुम, क्या हूँ मैं
तुम्हारे लिए ....
जब जब पूछा , उलझा दिया
तुमने अपने ही सवालो में
लगता है यूं कि कोई मायने
नहीं रखता मेरा कोई भी सवाल
मेरा वजूद, मेरे होने का मतलब
इसीलिए नहीं देना चाहते
तुम कोई जवाब मेरे सवालो का
मुझे पता है कोई अधिकार नहीं
मेरा तुम पर आज भी अजनबी हूँ मैं
तुम्हारे लिए, मैं भी नहीं चाहती
तुम्हे बांधना किसी भी बंधन में
बस चाहती हूँ एक ऐसा रिश्ता
जो मोहताज न किसी बंधन का
जहा कोई ग़लतफ़हमी ना हो
जहा कोई उमींद ना हो
और ना हो कोई इंतज़ार
ना तो मैं तुमसे कुछ पुछु
ना तुम्हारे पास हो कोई सवाल
बस चाहती हूँ की तुम रहो
मेरे एहसास बन कर
मेरे जज्बात बन कर
तुम मुझे जवाब दो या ना दो
तुम मेरे ना होकर भी
बस तुम मेरे ही रहो ..|
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