पहना था जब
अलंकार तेरे प्यार का
गूंज उठा मन संगीत से
पाकर तेरा प्यार बांध गई
जब तुझासे
जन्म जन्म का था ये
रिश्ता पल दो पल
की बात नही थी k
किया था समर्पण
पूरे अंतर्मन से
मन में थी व्यथा
मिलने की चाहत
चुभ रहा था कांटा कोई
विरह वेदना का
साथ चल नही सकते
ना ही कोई आश थी
तुझको पाने की ना ही कोई चाह थी
आवश्यकता नहीं में तूझसे
बांध जाऊं
मोहताज नहीं मैं की जुड
जाऊं तेरे नाम से
तुझमें खोकर ही खो
पा लूं बस तेरी ही होकर रह जाऊं ।।
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