साथ चले थे थाम
कर एक दूसरे का
हाथ फिर क्यूं
तुम सिर्फ तुम ही
रह गए
क्यों हमेशा
तुमने सिर्फ अपनी
कही
मेरी कभी सुनी ही
नही
क्यों तुमने
मेरी हर बात को
अनदेखा
और अनसुना कर दिया
इस अनसुनी के वजह
से
ना जाने कितनी
बाते
अनकही रह गई
हमारे बीच की
शांति को
जाने कब
सन्नाटे ने घेर
लिया
और हमारी दूरी कब
फासलों में तब्दील
हो गई
पता ही ना चला
तुमने हमेशा मेरे
मुस्कुराहट
को देखा उसके पीछे
छिपे
दर्द को जानने की
कोशिश
ही नही की
कितनी रातें
जागी है ये आंखे
कभी झांककर नही
देखा
शिकायतों का दौर
कुछ इस तरह चलता
रहता है की शायद
अंतिम सांस तक
ही थमे
कभी खुद से मुक्त
हो तो सोचना तुम
कभी खुद से परे
होना तो सोचना तुम
कि वक्त कहा से कहा
लेकर आ गया
शुरू किया जो एक
साथ
वो रास्ता क्यूं
बदल गया
महसूस करना कभी
मेरी मुस्कुराहट
के
पीछे छिपे दर्द को
मेरी आंखो में
छिपे
उस आंसू को
जो बहते बहते कही
थम गए है
टटोलना मेरे मन को
जो अब कही भी मेरा
साथ नही देता ।।