बुधवार, 12 जून 2024

साथ चले थे.....

 


साथ चले थे थाम

कर एक दूसरे का 

हाथ फिर क्यूं

तुम सिर्फ तुम ही रह गए 

क्यों हमेशा 

तुमने सिर्फ अपनी कही 

मेरी कभी सुनी ही नही 

क्यों तुमने 

मेरी हर बात को अनदेखा 

और अनसुना कर दिया 

इस अनसुनी के वजह से 

ना जाने कितनी बाते 

अनकही रह गई 

हमारे बीच की शांति को 

जाने कब 

सन्नाटे ने घेर लिया 

और हमारी दूरी कब 

फासलों में तब्दील हो गई 

पता ही ना चला 

तुमने हमेशा मेरे मुस्कुराहट 

को देखा उसके पीछे छिपे

दर्द को जानने की कोशिश 

ही नही की 

कितनी रातें 

जागी है ये आंखे 

कभी झांककर नही देखा

शिकायतों का दौर 

कुछ इस तरह चलता 

रहता है की शायद 

अंतिम सांस तक 

ही थमे

कभी खुद से मुक्त 

हो तो सोचना तुम 

कभी खुद से परे 

होना तो सोचना तुम 

कि वक्त कहा से कहा 

लेकर आ गया 

शुरू किया जो एक साथ 

वो रास्ता क्यूं बदल गया 

महसूस करना कभी 

मेरी मुस्कुराहट के 

पीछे छिपे दर्द को 

मेरी आंखो में छिपे 

उस आंसू को 

जो बहते बहते कही 

थम गए है 

टटोलना मेरे मन को 

जो अब कही भी मेरा

साथ नही देता ।।

मेरी कलम ....

 

तुमसे विरह होकर 

वेदना मिली 

और मेरी कलम 

ने हमेशा विरह को 

महसूस कर 

वेदना को लिखा 

विरह और वेदना दोनो 

एक दूसरे के पूरक है 

प्रेम है तो विरह भी 

होगा विरह होगा तो 

वेदना भी मिलेगी 

प्रेम में विरह ही 

प्रेम को पूर्ण करता है 

और वेदना के साथ 

हम सारी जिंदगी 

सांस लेते रहते है ।।

 

 

बिछोह .....

 

प्रेम बिछोह के बाद भी 

रहता है जीवित यादों में 

लेता रहता है  सांस 

प्रेमिका के 

सांसों के साथ 

धड़कता रहता है 

प्रेमी के धड़कनों के साथ 

कुछ नही बदलता 

सब वैसा ही रहता है जैसा 

बिछड़ने से पहले था 

वही अक्स वही चाहत 

फर्क है तो सिर्फ 

बिछोह का एक दूसरे 

से दूर होकर भी जीवित 

रहता है प्रेम

दोनो के दिल में 

क्योंकि प्रेम में बिछोह है 

समाप्ति नही ।।

प्रतीक्षा.....

 

तुम्हारी प्रतीक्षा जीवन के 

अंतिम सांस तक रहेगी 

मेरे जीवन का अंतिम पड़ाव 

तुम्हें प्राप्त कर तुम में 

मिल जाना है 

मेरी कुछ सांसे उधार है 

तुम पर बस उन सांसों 

को जी लूं फिर कोई 

शिकायत नही होगी



जाने से पहले 

तुम्हारा मौन 

होना ना जाने 

कितनी बाते 

कह गया 

तुम्हारा शब्दहीन 

होना मेरी 

उदासी बन गई 

और दूरियों को 

फासले में तब्दील हो गई ।।


बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

साल भी गुजर गया ...

 


जाते जाते ये साल भी 

गुजर गया 

छोड़ गया तो सिर्फ 

तुम्हारे प्रेम के साथ 

तुम्हारी असीम यादें 

देखो कितनी उलझन 

आज भी है तुम्हारे प्रेम में 

जाने वो कौन सा साल होगा 

जब तुम लौटकर आओगे 

या शायद तुम्हारा लौटना 

संभव ही नहीं है इस जनम में 

साल दर साल गुजरते जा रहे है 

मगर तुम्हारा प्यार और भी 

गहरा होता जा रहा हैं

तुम्हारी यादों के साथ 

मगर मेरी जिंदगी बस 

गुजरते साल की तरह 

बितती जा  रही है ।।

 

 

 

वो है इमरोज ...

 


कभी तो इंतजार की 

धुंध छटेगी....

कभी तो मिलन की 

धूप खिलेगी ....

अभी उदासी है 

घने कोहरे की तरह 

अभी कुछ दर्द है  

ठंडी हवाओं सा ...पर 

एक उम्मीद है अभी कि 

तेरे आने से घर गलियां

सब महक उठेगी

और छट जाएगा ये 

कोहरा फिर से अपने 

 मिलन की  धूप खिलेगी ।।

 





कितनी उलझी हूं मैं 

अगर फुरसत हो तो 

आकर सुलझा देना 

थक गई हूं मैं खुद 

से कभी रूठ जाऊं 

तो आकर मना लेना 

दूरियां खत्म करने का 

हो कोई तरीका तो 

खुद समझना और 

समझा देना ।।





आसान नहीं है इमरोज होना 

प्रेम की पराकाष्ठा को महसूस कर

जो निभा जाए ताउम्र प्रेम को 

वो है इमरोज ...

अगले जन्म में मिलने के वादे पर 

जो जी जाए इंतजार को 

वह है इमरोज ...

सिर्फ इस एहसास से की वो मेरे 

साथ है उस मिलन को जी जाए 

वो है इमरोज ...।।