छोड़ बहुत कुछ उस तट पर,
हम इस पार चले आये |
मणियां, सीप, शंख, सब छूटे
खाली हाथ चले आये ||
पता नहीं इस तट पर क्या मिलेगा,
पर जो छूट गया उसे कैसे भूलू |
यादें उनकी छलक रही है,
जी करता है- जी भर के रो लू ||
देख रही हूँ आँख पसारे,
नया- नया सब दूर छितिज |
ढूँढ रही हूँ कुछ अपनों को
इस पार क्योंकि .....
है अनजाने और सभी अपरिचित ||
माना, मैं फिर पा जाउंगी,
नई मणिया, मोती और सीप |
पर वो मंदिर नहीं मिलेगा
जहा जलाऊं मै अपना दीप,
तन तो चला आया इस पार
पर मन तो अभी भी वही है उस पार,
मीत हमारा छूट गया
नहीं भूलेगा उसका प्यार...... |