कट जाती है हर शाम मेरी
यूँ ही तेरे इन्तजार में कोई
तो ऐसी शाम हो जिसमे तुम आओ
मगर वो शाम कभी नहीं आती
बैठे हो हम हाथो में हाथ डालकर
देखे डूबते सूरज को
खो जाये शाम की आगोश में
मगर वो शाम कभी नहीं आती
किसी शाम हम करते रहे बातें
और वक्त बीत जाये ऐसे कि
सुबह से शाम हो जाये
मगर वो शाम कभी नहीं आती
किसी एक शाम दे दो तुम मुझे इज़ाज़त
अपने पहलू में बैठने की
आँखों से दिल में उतरने की
मगर वो शाम कभी नहीं आती
किसी एक सुहानी शाम को
गुनगुनाऊं मै तुम्हारे प्यार के गीत
जी लूँ तुम्हारे साथ
मगर वो शाम कभी नहीं आती
तुम्हारे एक शाम की इंतज़ार में
न जाने कितनी मेरी शाम गुजर जाती है
मैं सोचती रहती हूँ कि भर दूँ मैं
अपने प्यार के रंग से
तुम्हारी किसी एक शाम को
मगर वो शाम कभी नहीं आती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें