रोज़ रोज़ न जाने कितनी बाते
मैं करती हूँ तुमसे ....
कुछ बयां हो जाते है तो
कुछ थम से जाते है
ये तुम्हारा एहसास ही तो है
जो मेरे जुबाँ तक आ जाता है
ये तुम्हारे जज़्बात ही तो है
जो आँखों से छलक जाते है
कितनी ही बाते है जो तुम्हे बतानी है
कितने ही एहसास है जो तुम्हे जताने है
तेरे प्यार की गर्माहट से
थमे हुए शब्दों को पिघलाने है
पिघले हुए जज्बातों को तेरे
सामने बहा देना है
तेरे प्यार से खुद को भिगो कर
तेरे साथ में बह जाना है
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