वक्त को यही मंजूर था की
कल मिला मुझसे मेरा अतीत
पूछ रहा था हाल मेरा
कह दिया ठीक हूँ
उसकी नजर भी बहुत
कुछ बोल रही थी
मगर कुछ कह नही पाया
नजरो में कई सवाल थे
और कुछ जवाब भी
मगर ना मैंने कुछ बोला
ना उसने कुछ कहा
खामोशी छाई थी बस
कैसे कह देती उससे की
बहुत याद आती है तुम्हारी
बहुत दर्द होता है तुम्हारे जाने का
क्या सोचता वो
याद तो उसको भी आती ही होगी
मगर उसने भी तो कुछ नहीं कहा
फिर मैं कैसे कहती
वक्त ने साथ तो दिया
लेकिन वक्त नहीं दिया
कुछ बात करे
हाले दिल बयान करे
नाराज था वो शायद
अपनी परिस्थितियों से
और वक्त से भी
इसलिए कुछ रौनक नही थी
चेहरे पर जो पहले होती थी
मैं भी बंधी थी कुछ
बंधनो से इसलिए खामोश रही
देखती रही उसको और
वो मुझे देखता रहा
दोनों की आंखे भर रही थी
इससे पहले की सैलाब बहता
उस सैलाब में हम दोनों बहते
मैं मुड़ गयी अपने राह पर
वो भी चल दिया अपने रास्ते
वक्त को भी यही मंजूर था ।
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