कौन हूँ मैं अज़नबी..?
इस विस्तृत संसार में अकेला
समय जल सा बह रहा.... और मैं
समय के साथ में
इक धरे देह में...डोंगी नाव सी
खे रहा हूँ थम कर पतवार पुरुषार्थ की...!
कौन हूँ मैं अज़नबी..?
मिल गया कोई सफर में
थम ली जो बाहे पल में
नेह का स्पर्श मन को जो ही मिला
त्यों ही अचानक.....
इक समय की धार... निष्ठुर
ने कर दिया उसको विलग
मैंने बहुत पुकारा भी उसे. ..पर
बह गया वह समय की धार में
खो गया वह कही संसार में...!
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