खुद की तलाश
खुद को पाने की चाह
क्यों ऐसा होता है
तलाश खतम नही होती
और उम्र गुजर जाती है
सब पीछे छूट जाता है
आस फिर भी रह जाती है
तड़प रह जाती है
खुद को पाने की
आस्मा में पंख फड़फड़ाने की
जब देखती हूँ आईना
खुद का अक्स भी खुद से
दूर नजर आता है
जो देख कर मुझे
सिर्फ मुस्कुराता है
रिश्तो से जकड़ा हुआ
और बंधनो से बंधा हुआ
पाती हूँ खुद को अब तो
एक ख्वाब की तरह
जो आंख खुलते ही
कही गायब हो जाता है
रह जाता है तो मेरा
खोया हुआ वजूद जो
खुद की तलाश में
तन्हा भटक रहा है ।