कुछ गमों की दीवार है
गिराना चाहती हूं
ऐ जिंदगी तुझे फिर से
गले लगाना चाहती हूं ।
जी लेना चाहती हूं
एक बार फिर से
पूरी उम्मीद के साथ
हौसली के साथ
उड़ जाना चाहती हूं
ऊंचा बहुत ऊंचा
अपने पंखों के साथ
जहा कोई बंधन ना हो
जहा कोई पा ना सके
कोई छू ना सके
मेरे मन को
मेरे सपने को
फिर से मुस्कुराना चाहती हूं
ऐ जिंदगी तुझे फिर से
गले लगाना चाहती हूं ।
मचल जाना चाहती हूं
तितली की तरह
महक जाना चाहती हूं
फूलों की तरह
खुशबू बन कर फिर से
बिखर जाना चाहती हूं
ऐ जिंदगी तुझे फिर से
गले लगाना चाहती हूं ।
बह जाना चाहती हूं
चंचल नदी की तरह
समा जाना चाहती हूं
समंदर की बाहों में
छू कर किनारों को
बस दूर कही निकल
जाना चाहती हूं
ऐ जिंदगी तुझे फिर से
जी लेना चाहती हूं ।।
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