वो शाम कुछ तो अजीब थी.....
वो शाम कुछ तो अजीब थी
मैं उस दिन कितनी खुशनसीब थी
उस दिन खुशियाँ मेरे करीब थी
वो शाम कुछ तो अजीब थी
बैठे थे जब हम फुरसत से
एक दूसरे के पहलू में
सजदा किया एक दूसरे को
इबादत की अपने एहसासों की
तेरा मेरे कांधे पर झुकना
वो हाथों की छुअन भर से
वो धड़कनो का मचलना
उस शाम में कुछ तो बात थी
ढलता हुआ सूरज अलसाये हुए फूल
पंछियो की चहचाहट नीड़ की तलाश
लगा जैसे वक्त ठहर क्यों नही जाता
ये शाम रुक क्यों नही जाती
नदी का पानी भी मौन था
हमारी धड़कनो को सुनने के लिए
चलती हवा रुक गयी थी हमारे
एहसास को महसूस करने के लिए
कितनी ख़ूबदुरत थी बो शाम
उस दिन जिंदगी कितनी खूबसूरत थी
क्योकि वो शाम बहुत ही अजीब थी ।
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