इंसानियत..
चलो सोये इंसान को जगाते है ,
कुछ इंसानियत निभा कर आते है ।
उजाड़ ली बहुत बस्तियाँ अब
चलो अब दिल मे मासूमियत जगाते है
फिर से नई बस्ती बसाकर आते है
कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।
क्यों फैलाते हो नफरत हर तरफ
क्यों पालते हो आस्तीन के सापों को
चलो उनको दूर कही छोड़ कर आते है
कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।
आपस की लड़ाई में कितने रिश्ते टूट गए
कुछ बिखर गए तो कुछ छूट गए
चलो उन रिश्तो को जोड़कर आते है
कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।
फैला कर हर तरफ नफरत की आग
क्या मिला कुछ तेरा घर जला
कुछ उसका घर जला
चलो उन शोलो को बुझाकर आते है
कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें