अनचाहे रिश्तो
को निभाया मैंने
न चाहते हुए भी
अपना बनाया मैंने
क्या कहूँ क्या ना कहूँ
चुप रहकर ही सबको
अपना बनाया मैंने
आता है मुझे भी बोलना
ये मालूम था सबको
फिर भी सब ने हर वक्त
कुछ न कुछ सुनाया मुझे
झूठे रिश्तो ने बहुत सताया
खोल दूँ जो झूठ की परत
एक बार कुछ रिश्ते टूट जाएंगे
कुछ बिखर जाएंगे बस
यही सोच कर बहुत
कुछ सबसे छुपाया मैंने
दर्द बहुत था मेरे दिल मे भी
आंखे भरी थी मेरी भी
फिर भी रिश्तो की खातिर
हर वक्त मुस्कुराया मैंने
ख्वाब मेरे भी थे कि छू लूँ
आसमां को उड़ जाऊं
उन्मुक्त होकर पंछियो की तरह
मगर बहुत कुछ सोचकर
अपने पंख कटाया मैंने
एक घर से दूसरे
घर में किया बसेरा
कब रात हुईं और कब हुआ सवेरा
कुछ पता नही चला
रिश्ते बनाते बनाते
खुद को कब खो दिया
उनको संभालते सभालते खुद
का दुख दर्द सब भूल गयी
जब होश आया तब
तक तो बहूत देर हो गयी
देर भी हुई और खुद से
दूर भी हो गयी
ढूंढने लगी खुद को
खुद के वजूद को
कही नही मिली मैं खुद को
मैं तो थी ही नही
कही भी नही
मैं सिर्फ एक बहु एक पत्नी
एक माँ थी और वही मिली
मेरे अंदर मेरा वजूद बनकर
मैं कही नही थी... कही भी नही थी।
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