सुनो, लौट आओ ना तुम
जैसे सूरज रोज एक
नई किरण के साथ आता है
वैसे तुम भी लौट आओ
रोज चांद भी तारो से
मिलने अपनी बाहे फैलाये
उनको आगोश में
लेने आ जाता है
देखो ना, शाम होते ही पंछी कैसे
अपने नीड़ में वापस आते है
तुम भी आ जाओ वापस
सावन भी आ गया बादल भी
बरस गए तुझे देखने को
ये नैन भी तरस गए
बुझाने इन नैनो की प्यास
अब आ जाओ ना
तुम दूर उस आसमा
की तरह हो गए हो
जिसको देखने के लिए
मैं धरा की तरह तुम्हारी
प्रतीक्षा में टकटकी लगाए
हुए धूमिल होती जा रही हूँ
तृप्त कर दो मुझे
अपने प्यार की बारिश से
अब आ भी जाओ
अब लौट भी आओ...।
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