कितना सुकून था
जब बचपन था
कितनी मासूमियत थी
कितना भोला पन था
लड़ना झगड़ना फिर
खिलखिलाना वो
आंगन में मस्ती वो
माँ के गोद की विरासत
वो लोरी की धुन
वो मम्मी से शिकायत
वो पापा से चुगली करना
कितना खूबसूरत था वो
भाई बहन का लड़ना
वो राखी का त्योहार
जिसका होता था बड़ी
बेसब्री से इंतज़ार
वो भाई का जेब खर्च बचाकर
तोहफा लाना उस तोहफे को
पाकर बहन का इतराना
वो तोहफ़ा सखियों सहेलियों
को महीनों तक दिखाना
कितना हसीन था वो जमाना
क्या फर्क पड़ता है कि
गर हो गयी है कुछ दूरिया
फीके पड़ गए है कुछ रिश्ते
हो गयी है कुछ मजबूरियां
ये रिश्तो की ताकत है
जो खतम नही होता
ये भाई- बहन का प्यार है
जो कभी कम नही होता ।
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