बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

धूप का एक टुकड़ा ...

 


सर्दियों की 

शीतलहर में 

धूप का एक टुकड़ा ...

उतर आता है आंगन में 

और दे जाता है 

आंखो को 

राहत के कुछ पल 

ठहर  जाती है 

जिंदगी जैसे 

उस एक टुकड़े धूप पर 

ना जाने 

कितने खयाल 

जाते है

 मन में उस धूप 

के एक टुकड़े को देखकर 

एक मुस्कान 

खिल जाती है चेहरे पर 

बैठकर उस टुकड़े भर धूप में 

अपनी डायरी 

और पेन के साथ 

उकेर डालती हूं 

कुछ खट्टी मीठी 

बचपन की यादें 

कुछ जवानी के किस्से 

तेरे साथ होने 

का एहसास 

तेरी यादों में

 गुजारे हुए दिन 

दिल के दर्द को 

टूटे हुए सपने को 

सब बाट देती हूं 

मैं उस धूप 

के एक टुकड़े के साथ ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें