प्रीत और प्रतीक्षा
दोनो एक दूसरे के
पूरक है
प्रीत है तो प्रतीक्षा है
प्रीत ने प्रेम में हमेशा
प्रतीक्षा ही दिया है
प्रेम की पराकाष्ठा
प्रतीक्षा की तरफ ही
लेकर जाता है ।।
मौन संवाद सिर्फ
ईश्वर के साथ होता है
जिसको प्रार्थना
बोलते है ।
मेरे और ईश्वर के
मौन संवाद में
सिर्फ तुम होते हो ।।
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