रविवार, 8 मार्च 2020

मैं एक स्त्री हूँ




मैं  पत्थर नहीं मैं कठोर नहीं 
मैं साँसों की पहेली भी नहीं 
मैं सिर्फ देह की  मूरत नहीं 
मैं एक वजूद हूँ 

मैं कोई कठपुतली नहीं 
मैं एक डोर हूँ 
जो बांध  कर रखती हैं सबको 
मैं रास्ता नहीं मंजिल हूँ मैं 
मैं एक पहचान हूँ 

मैं हवा हूँ जो चलती रहती है 
सदियों तक थकती नहीं रूकती नहीं 
जितना जलती हूँ मैं 
उतना निखरती हूँ मैं 
मैं एक वक्त हूँ 

मैं भी बिखरती हूँ कभी कभी 
पर फिर उठकर खड़ी  हो जाती हूँ 
फिर जुड़ जाती हूँ सबको जोड़ती हूँ 
मैं एक धागा हूँ 

मैं कोई किस्सा और  कोई कहानी नहीं 
मैं पेड़ो पर लिपटी कोई बेल भी नहीं 
मैं उर्वरि धरा, ब्रम्हांड का स्वरुप हूँ 
मैं जननी हूँ 

मैं फूलो सी कोमल भी हूँ 
मैं पंखुडिओ सी नाजुक भी हूँ 
मैं खुद से खुद को तलाशती हुई 
मैं एक स्त्री हूँ... 
दूर धरा सी फैली ममता और 
प्यार लिए 
अपनी बाहों को फैलाये हुए 
मैं  एक माँ हूँ.... मैं एक स्त्री हूँ