शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

कितना अजीब हैं .......





कितना अजीब है ये 
कभी सोचा तुमने ...
सोचा कभी की 
गलतिया तुमसे भी होती है 
मगर क्यूँ  मैं खामोश रहती हूँ .....
क्यूँ मैं  माफ़ी मांग लेती हूँ 
बिना किसी गलती के..
इसलिए की तुम्हे हारता हुआ
नहीं देखना चाहती 
सोचो कुछ अजीब नहीं ये.... 

तुम्हरी शर्ते मुझे मंजूर हैं इसलिए कि 
तुम बिना शर्त के जिंदगी जी सको 
मैं  बिना शर्त के हर शर्त मानती हूँ  
सोचो कितना अजीब है ये....
 
तुम्हारी जरुरत का पूरा ध्यान रखती हूँ 
पर तुम मेरी ख्वाहिशों  का कत्ल  
करते समय एक बार भी नहीं सोचते 
तुम देखो ...  कितना अजीब है ये...
 
मैं रूठ कर भी तुम्हे ही मनाती हूँ  
तुम कोशिश  भी न करो मुझे मनाने की 
मेरे पास आने की 
देखो कुछ अजीब है ये  
तुम रोज  नए राह  पर चलते रहो 
और चाहते हो कि 
मैं उसी मोड पर खड़ी रहूँ 
देखो तो कुछ अजीब है ये....
 
हर सवाल का जवाब तम्हे चाहिए 
मगर मेरे सवालो का क्या 
मैं  कहा ढूँढू  उसका जवाब 
कभी सोचा तुमने कि 
ये सब   कितना  अजीब हैं