बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

पाँच दियो की दिवाली .......|



पाँच दियो की दिवाली.... 




सन 2007 , नवम्बर  दिवाली का त्योहार .... नेटिव प्लेस जाने की तैयारी |


किसी भी त्योहार मे जो कोई भी अपने घर से दूर रहता है वो घर जाने की तैयारी करने लगता है पहले से ही | सो... हमने भी की, दो दिन पहले घर जाने का टिकट था | हम भी निकल पड़े घर के लिए .... |

सुबह ही हमारी ट्रेन थी ,पति देव की तबीयत पहले से ही थोड़ी खराब थी फिर भी हम किसी तरह स्टेशन पहुच गए क्योकि घर जाने की जल्दी जो थी | जैसे ही हम स्टेशन पहुचे तो पता चला की ट्रेन शाम को आएगी मतलब की सुबह 5 बजे की ट्रेन शाम को 4 बजे आने वाली है | हसबेंड की तबीयत तो पहले से ही खराब थी तो हमने शाम तक के लिए होटल ले लिया स्टेशन के पास ही |  वापस चंडीगढ़ जाना पॉसिबल नहीं था क्योकि  हम अंबाला मे थे | शाम को जब स्टेशन आए तो पता चला की ट्रेन ही कैंसिल हो गयी | बाद मे हमे वापस चंडीगढ़ ही आना पड़ा अपने घर वापस क्योकि हसबेंड की तबीयत भी बहुत ज्यादा खराब हो गयी थकान  होने से|

खैर हम दोनों वापस आ गए ... मेरी शादी के बाद पहली दिवाली और मै घर नहीं जा पाई | अब तो दिवाली अकेले ही मनानी पड़ेगी ये सोच कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था  ...पर अब इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था |

दूसरे दिन हसबेंड को डॉक्टर को दिखाया ,डॉक्टर ने बोला की सिवियर वाइरल  इन्फ़ैकशन है फूल रेस्ट की जरूरत है| घर जाने के वजह से मैंने दिवाली की कोई भी शॉपिंग नहीं की थी ...न तो घर मे एक भी दिया थ न ही नई मूर्ति पूजा के लिए | अब पतिदेव तो कुछ कर नहीं सकते थे तो मुझे ही सब कुछ अकेले करना पड़ा |
धनतेरस के दिन मै मार्केट गयी मेरे को समझ नहीं आया की मै क्या लू दो लोगो के बीच मे कितनी स्वीट्स लू ,कितने दिये लू ...क्या क्या लू कितना लू |

मै एक बहुत बड़े फॅमिली से हू  मेरा कोई भी फ़ेस्टिवल्स अकेले नहीं बिता बल्कि सब के साथ मना है | मै हमेशा बड़े परिवार के बीच रही हू वही त्योहार मनाया है | कुल  35-40 लोगो का परिवार था मेरा, जहा कोई भी फ़ेस्टिवल्स सब साथ मे मिलकर मानते थे |

और अब मै शादी के बाद बिलकुल अकेले , हसबेंड है तो उनकी भी तबीयत ठीक नहीं थी  ......मै क्या करती |

मैंने मार्केट से थोड़े स्वीट लिए , कुछ पूजा का समान लिया ,छोटी सी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति ली एक पैकेट  कैंडल लिये और सिर्फ पाँच दिया लिया .....क्योकि उससे ज्यादा की जरूरत नहीं थी |

कहा हमारे घर मे पाँच सौ दिये आते थे और कहा आज मैंने सिर्फ पाँच दिया लिया ....आप खुद सोचिए कैसा लगा होगा मुझे | खैर मै  मार्केट से घर  लौट आयी पाँच दिये लेकर …. |

दूसरे दीन दिवाली थी और फिर मैंने छोटी  सी रंगोली बनाई पूजा करने के लिए उसमे अपने पाँच दिये सजा दिये | मुझे बहुत बुरा लग रहा था और आश्चर्य भी हो रहा था की समय कहा से कहा ला  देता है | आज मै अकेले दिवाली मना रही थी , जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी | फिर मैंने दिवाली की पूजा सम्पन्न की और दिये जलाए | मैंने अपने वो पाँच दिये उन पाँच सौ दियो  को याद करके जला लिए | वो पाँच सौ दियो की रोशनी  और मेरे उन सब बड़ो का आशीर्वाद मुझे उन पाँच दियो मे दिख रहे थे जो उन दियो  की तुलना मे  बहुत कम थे पर मेरे उस छोटे से घर को रोशन करने के लिए काफी थे |

इस तरह से मेरी पाँच सौ दियो की दिवाली पाँच दियो मे सिमट कर रह गयी | वो दिवाली मेरे  ज़िंदगी की सबसे सुनहरी याद बन गयी जिसने अकेलेपन  का दुख तो दिया पर ढेर सारा एक्सपिरियन्स दे गयी ...............|   








 

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

मनाली की एक रात ................


सन 2006  अगस्त .............. जैसा  सभी शादी के बाद घूमने का प्लान करते  है , वैसे ही  हमने भी  प्लान  बनाया मनाली घूमने का,
अगस्त का महिना , बारिश का मौसम  होता है| हम मनाली के लिए निकल गए  तीन दिनो  का प्रोग्राम था हमारा | हमने दिन मे सफर करने की सोची क्योकि पहाड़ो की जो ब्यूटी रास्ते मे होती वो देखने ही लायक होती है |
चंडीगढ़ से मनाली ............. हम देर शाम तक मनाली पहुच गए | रास्ते की ढेर सारी खूबसूरती  हमारी आंखो मे बसी हुई थी |
 अगले दिन हम पूरा दिन मनाली घूमते रहे | पहाड़ी इलाके की जो खूबसूरती होती है वो कही नहीं होती  है उसपर मौसम  भी
 ठंडा ..... दोनों का अपना  ही  ताल -मेल है |

दूसरे दिन हमने प्लान किया रोहतांग जाने का | सुबह ही हम टॅक्सी के द्वारा रोहतांग के लिए निकल पड़े , पूरा रास्ता रोमांचकारी था | इतना आनंद आया की मेरे पास उसको बताने के लिया शब्द नहीं है |
हमे बहुत  देर हो गयी , बारिश भी शुरू हो गयी थी टॅक्सी वाले ने बोला की अगर हम जल्दी नहीं निकलेंगे तो फस जाएंगे जब तक हम रोहतंग से नीचे आए तब तक रात होने वाली थी और अभी मनाली करीब 10  किलोमीटर दूर था | बारिश और ज़ोर से होने लगी थी सभी परेशान थे | हम मैदानी इलाके मे रहने वाले , पहली बार पहाड़ घूमने गए और वहा  के मौसम के बारे मे हमे कोई आइडिया नहीं था | ऐसी बारिश मैंने कभी देखी    नहीं थी | बारिश की वजह से रास्ते कटते  जा रहे थे    |बारिश तेज होती जा रही थी हमे घबराहट होने लगी थी  की हम किसी तरह बस होटल पहुच जाए | लेकिन मेरे  हसबेंड बहुत ही स्ट्रॉंग और अण्डरस्टैंडिंग है उनको पहाड़ो के मौसम के बारे मालूम था  इसलिए वी थोड़ा शांत थे | लेकिन जैसे- जैसे बारिश तेज होती जा रही थी,तो  वो भी परेशान होने लगे | किसी तरह हमने शहर मे एंट्री कर  लिया .... पर शायद ये रात  हमारे लिए भयानक रात थी |अन्दर  शहर मे इतना  लंबा जाम लगा था ... शायद बारिश की वजह से , जाम लग गया था | टॅक्सी मे बैठे -बैठे हम भी परेशान हो गए थे और डर  भी लग रहा था | आधे घंटे हो गए जाम खुलने का नाम ही नहीं | खैर हमे टॅक्सी वाल्व ने बोला ,,, की आप लोग उतर कर पैदल चले जाए तो बेहतर होगा वरना पता नहीं जाम कब तक खुलेगा |हम टॅक्सी से उतार गए और पैदाइ चलने लगे हमारा होटल भी थोड़ा   दूर था | इसलिए हमे काफी दूर तक पैदल चलना पड़ा | हमे ऊपर होटल की तरफ जाना था और बारिश हमारे उल्टे थी  जैसे लग रहा था की हम बारिश के साथ बह जाएंगे | फ़िर भी हमने बड़ी हिम्मत की और तेज कदमो से चलते रहे | ऐसी बारिश मैंने सिर्फ फिल्मों और टीवी सेरियल्स मे ही देखा था | आज  महसूस हो रह था सीन कितने नैचुरल तरीके से दिखाए जाते है|   एक तो ठंड उसपर से बारिश ,,, हम दोनों इतने भीग गैर थे की हमसे चला नहीं जा रहा था बारिश हमे धक्के मर कर कर नीचे की तरफ कर रही थी और हमारी चल बार -बार स्लो हो जा रही थी | उसी बारिश मे भीगी साड़ी मे मेरे दोनो पायल कब खुलकर बारिश के साथ  बह गए पता ही नहीं चला | खैर हम किसी तरह एक दूसरे का हाथ चल रहे थे | तभी हमे अपना होटल दिखाई दिया तो हमारी जान -जान मे जान आयी और हमे लगा की अब शायद हम बच जाएंगे....इस भयानक बारिश से | फ़िर हम कैसे भी करके होटल के अन्दर पहुच गए और फ़िर एक लंबी राहत की सांस ली और भगवान को ध्न्यबाद किया |
वो रात और वो बारिश हमे आज भी याद है जिसे हम कभी भी भ्लु नहीं सकते |



बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

मेरी माँ ..........





मेरी माँ .......... एक ऐसी शक्सीयत जिनकी बारे मे जितनी भी बाते करो कम है | हर माँ कि एक अलग ही छवि होती है | मै  भी एक माँ हू .....  मेरे
 बेटे के लिए मै अलग हू |  ऐसे ही हर माँ कि  अपने आप मे एक  मिसाल होती है |
मेरी माँ दूसरों से थोड़ा सा अलग थी | वो हमेशा जो भी करती दिल से 

करती थी ,उनको कभी किसी से कोई  शिकायत नहीं थी |उनको किसी 
चीज का लालच नहीं था वो सदा परिवार के लिए जीती थी | वो जब भी 

हसती थी दिल से हसती और जब कभी दुखी होती तो पल भर के अंदर उनका गुस्सा गायब हो जाता | वो ज्यादा देर किसी से नाराज रह नहीं 
पाती थी और ना  ही उनसे कोई नाराज रह पाता था वो तुरंत  सबको अपने प्यार से मना  लेती थी | वो सबके लिए  एक उदाहरण थी | सब उनको बहुत इज्जत और सम्मान देते  थे |

हम चार भाई -बहन है ,सबको उन्होने अच्छे  संस्कार दिया |प्यार दिया , अच्छी शिक्षा दी | हमे इस काबिल बनाया कि हम अपने जीवन मे हमेशा खुश और सुखी  रह सके |  

एक सम्पूर्ण महिला थी वो....  हर काम मे एक्सपर्ट ,खाना बनाना तो उनका शौक था | वो भी जल्दी और स्वादिस्ट | अगर कोई अचानक आ जाता , समय चाहे दोपहर के खाने का हो या रात के खाने का उनका खाना आधे घंटे के अंदर तैयार हो जाता |

मैंने उनकी ही पाक कला को उनकी धरोहर समझ कर अपना लिया है ... क्यो कि जब - जब मै  कोई डिश बनाऊँगी तब -तब मेरी माँ मेरे साथ होंगी |

आज वो हमारे बीच नहीं है पर हमारे साथ उनके दिये हुए संस्कार और शिक्षा हमारे साथ है | हमारे साथ  उनकी 
सुनहरी यादे है |

आज मै जब भी दुखी होती हु मुझे सिर्फ मेरी माँ कि याद आती है ,कभी -कभी  लगता है ... काश ! हमारे पास

कोई जादू कि छड़ी होती और उसकी सहायता से हम अपने उन प्रिय लोगो को अपने पास बुला लेते जो हमसे  दूर चले गए है |

बस मै यही   प्रार्थना करती हु कि  भगवान उनकी आत्मा को  शांति दे | वो जहा कही  भी हो हम सब को अपना आशिर्बाद देती  रहे |

क्योकि माँ ........... हम  सब को आपके आशिर्बाद कि बहुत जरूरत है , हम सब आपको बहुत याद करते है |

और  मै अगले जनम मे भी  यही चाहूंगी  कि मेरी यही माँ फिर से मुझे माँ बन कर  मिले |


रविवार, 4 अक्तूबर 2015

अकेलापन ...... घबराहट क्यो !

अकेलापन .....घबराहट क्यो...


जब हम कही  बहुत भीड़ वाली जगह पर होते है तो हम ये सोचते है कि कही  एक

 पल के लिए शांति मिल जाए तो अच्छा हो | जब हमारे घर मे कोई गेस्ट आता है

तो भी हम सोचते है कि वो जल्दी जाए और जल्दी शांति हो|

मतलब ये कि हम हमेशा शांति चाहते है , हमे एक पल कि शांति मिल जाए तो हमे बहुत ही शांति मिलती है |

शांति मतलब एकांत .......फिर हम अकेलेपन से क्यो घबराते है |जब हम हर समय

अकेलापन और शांति खोजते  रहते है तो हमे अकेलेपन से डर क्यो लगता है | सोच

कर ही घबराहट होने लगता है कि ...अरे हम अकेले है !

अकेले रहने का मतलब है कि हम अपने साथ रह रहे है | अपने आप को समय दे रहे

 है ,और अपने आप के साथ जी रहे है | जब हम अकेले होते है तो हम जैसे है वैसे

 ही अपने साथ होते है | पर जब हम किसी के साथ होते है तो हमे एक मुखौटे के 

साथ होना होता है |  अगर हमारा हसने का या बोलने का मन नहीं है तो भी हमे

 उसके साथ ये सारी भूमिका निभानी पड़ती है | तो फिर हमे अकेलेपन से डर क्यो

 लगता है | हम अकेले होकर जैसे होते है  वैसे ही अपने साथ होते है| हमे किसी भी

मुखौटे की जरूरत नहीं होती है |

आप अपने साथ थोड़ा टाइम स्पेंड कीजिये फिर देखिये आपको अकेले होने पर  कोई
 भी अवसाद नहीं होगा |

आज हमलोगो की जो जीवन शैली हो रही है उस हिसाब से तो हमे अकेले रहने की

 आदत को स्वीकारना ही होगा |

आज टेक्नोलोजी ने जितना ही हमे एक दूसरे से जोड़ा है ,उतना ही हम एक दूसरे से

 दूर भी होते जा रहे है ,ऐसे मे हम अकेले होते जा रहे है | आज के समय मे  अलग

 रहने का क्रेज बढ़ रहा है और हर कोई अकेले हो रहा है | तो जब हमारी पसंद ही

 अकेले रहना है तो फिर हमे  तनाव क्यो हो रहा है |

हमे अपने साथ रहने की आदत  डालनी चाहिए और ये आदत मजबूरी नहीं मर्जी

 होना चाहिए | क्योकि हम सबके साथ तो जी लेते है लेकिन अपने लिए कभी नहीं

 जी पाते ,अपने पर कभी ध्यान नहीं जाता और जब तक ध्यान जाता है तब तक

 बहुत देर हो चुकी होती है | 






शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

बच्चो से सीखे.....

                               बच्चो से सीखे 


हम बड़े हमेशा छोटी -छोटी बात पर घबरा जाते है ,और दुखी होकर निराश हो जाते है | क्योकि हमे  अपने जीवन

 मे  हमेशा कुछ ज्यादा ही पाने की  उम्मीद होती है | कुछ ज्यादा ही चाहत होती है | और जब वो उम्मीद पूरी नहीं
 होती है ,वो चाहत पूरी नहीं होती है तो हमे अवसाद मे चले जाते है | 

लेकिन अगर हम वही दूसरी तरफ अपने बच्चो को देखे तो हमे जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है | हम सिर्फ अपने बच्चो से सीख सकते है  कि हमे सच्ची खुशी  कहा मिल सकती है | 

जब आप अपने बच्चे को एक छोटा सा कोई भी खिलौना लाकर देते है तो उस खिलौने मे उसकी पूरी दुनिया
 सिमट जाती है | दिन  और रात वो उसी खिलौने से खेलता है ,उसी के साथ जीता है | एक बच्चे के लिए ये मायने नहीं रखता कि वो खिलौना कितने का है या कितना बड़ा है , वो सिर्फ उसको एक खिलौना मानकर उसके साथ खेलता है | 

लेकिन दूसरी तरफ हम बड़े ईगो मे परेशान रहते है कि हमारे पास ये नहीं  है , वो नहीं है | 

हम कभी भी उस चीज को देखकर खुश नहीं होते  है ,जो हमारे पास है बल्कि उस चीज से दुखी रहते है जो हमारे 

पास नहीं है |जो नहीं है उसीके  बारे मे सोचते रहते है |इस तरह से जो वस्तु हमारे पास है हम उसका एंजॉय नहीं

कर पाते है | और निराशा के साथ जीते रहते है |

आपका  स्कूल जाने वाला बच्चा ... ,जब उसको स्कूल के टीचर से एक छोटा सा स्टार मिल जाता है उसकी  छोटी सी मेहनत पर ......... तो दोस्तो क्या आपने  अपने उस बच्चे के  चेहरे की  खुशी देखी  है कि वो कितना 

खुश होता है |  हमारे लिए और उस टीचर के लिए उस स्टार की   कोई किमत नहीं है ,लेकिन उस बच्चे के लिए 

क्या किमत है ये आपको उससे पूछने  की कोई जरूरत नहीं है , आप सिर्फ उसके चेहरे की खुशी से अंदाजा लगा

 लीजिये उस स्टार की किमत की ............| जैसे सारे जहा की खुशी उसने पा  ली हो वो इस कदर खुश हो जाता है| |

बच्चे होते ही है मासूम और निश्चल , उनके लिए छोटी -छोटी खुशिया बहुत मायने करती है | 

लेकिन हमे हमेशा जीवन से कुछ ज्यादा चाहिए | 

इसीलिए मेरे  दोस्तो, हमे हमेशा अपने बच्चो से ही सीखते रहना चाहिए | उनकी तरह हमे भी छोटी -छोटी 

खुशियो मे अपनी बड़ी खुशी देखनी चाहिए | तभी हमे अपनी सच्ची खुशी का एहसास होगा और हम अपनी 

जीवन के सही मायने को देख सकेंगे और भरपूर आनंद ले सकेंगे |


बस करना ये है की हमे अपने बच्चो से ही हमेशा सीखते रहना है ............... |