बुधवार, 23 जून 2021

मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ ...

 


हिमखंडों से पिघल कर

पर्वतों से निकल कर

धरती  को सींचती

खेतों से निकलती

अविरल बहती रहती हूँ

क्योंकि मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ

हर पल आगे बढ़ती रहती हूँ

अपने गंतव्य की तलाश करते

सागर में मिल जाने के लिए

अपना अस्तित्व खो देने के लिए

मैं आतुर रहती हूँ  इसलिए मैं

निरंतर ही   बहती रहती हूँ .. क्योंकि

मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ ...।

 

 

 

 

 

ये बेटियाँ भी अजीब होती है


 

ये बेटियाँ  भी अजीब होती है 

पल में रोती है पल में खुश होती है 

ये बेटियाँ  भी .... 

 

जब तक घर मे होती है 

चिड़िया जैसी चहकती रहती है 

फूलो की तरह महकती रहती है 

ये बेटियाँ  भी ....

 

एक डाल से टूटकर दुसरे डाल पर 

बसने के लिए सब रिश्ते तोड़ जाती है 

बाबुल का आंगन छोड़ जाती है 

ये बेटियाँ  भी ....

 

एक नए तने से बांध कर 

एक नई जमीन पर 

एक नया घर बना लेती है 

ये बेटियाँ  भी ....

 

एक नए परिवेश में जाकर 

 भूल कर अपने वजूद 

खुद को तलाशते हुए फिर से 

अपना वजूद बना लेती है 

ये बेटियाँ  भी ....

 

अगर कभी याद आये अपनो की 

उन छुटे रिश्तो और खिलौनों की 

माँ के आँचल की बाबुल के आँगन 

की तो उनको  याद करके 

चुपके से आंसू बहा लेती है 

ये बेटियाँ भी ...

 

हो चाहे जितना भी दर्द दिल में 

भरी हो आंखे चाहे  कितनी  भी 

सामने आकर सबके वो जाने कैसे 

मुस्कुरा लेती है..... 

ये बेटियाँ भी अजीब होती है ..

 

 

 

 

एक स्त्री .....


 एक स्त्री 

जानती है सब कुछ 

वो सब जानती है 

लेकिन फिर भी जीती है 

खुल कर दिल से 

स्वछंद उड़ना चाहती है 

आकाश में पंख पसारे 

बन जाती है छोटी सी 

चिड़िया कभी इस डाल 

पर कभी उस डाल पर 

चहकती है पूरे दिन 

क्योकि पता है कि

एक दिन उसके भी

पर कट जाएंगे 

और वो कैद में चली  

जाएगी देखती है  खुली 

आँखों से सपना 

खो जाना चाहती है 

अपने सपने में 

सपनो की बाते करती है 

खुश रहती है अपने आप में 

जीती है अपनी दुनिया में 

क्योकि वो जानती है 

एक दिन उसपर भी 

कुछ अंकुश लग जाएंगे  

वो बांध दी जाएगी 

कुछ रिश्तो के बेड़ियों में 

माथा  ढक दिया 

जाएगा लाज का चुनर से 

मौन कर दिया जाएगा 

मर्यादा की चादर से 

फिर भी वो स्त्री है 

वो सब जानती है 

सब कुछ समझती है 

जी लेती है इन सब 

बंधनो के साथ 

बड़ी ही खूबसूरती से 

क्योकि वो एक स्त्री है ...।

 

हम क्या पाना चाहते है .....



जीवन का सच यही है 

हम क्या पाना चाहते है 

हमे ये भी पता नही है 

हम जिसको ढूंढते है 

वो मिलता नहीं है 

सोचो हमने जो पाया 

वो चाहा था क्या 

जो चाहा था वो पाया क्या 

जो सोचा था वो मिला नही 

जो मिला वो सोचा नही 

जो खो गया उसके ढूंढते रहे 

जो मिल गया वो रास आया नही 

जीते रहे बीते हुए कल मे 

आने वाले पल को जिया नही 

कुछ कड़वापन स्वाद है जिंदगी का 

तो बहुत कुछ मिठास भी है 

ये जिंदगी है इसको

जिना आसान नहीं 

बिना संघर्ष के बना

 कोई महान नहीं 

जिंदगी रुलाती है तो 

हंसाती भी है जिंदगी 

ये जिंदगी एक पहेली है 

जिसे कोई सुलझा पाता नहीं 

जीवन का जो सच है 

कर लो उसको स्वीकार 

 यही है जीवन के प्रति सच्चा प्यार ..।

इंसानियत...


 

 

इंसानियत..

 

चलो सोये इंसान को जगाते है

कुछ इंसानियत निभा कर आते है ।

 

उजाड़ ली बहुत बस्तियाँ अब 

चलो अब दिल मे मासूमियत जगाते है 

फिर से नई बस्ती बसाकर आते है 

कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।

 

क्यों फैलाते हो नफरत हर तरफ 

क्यों पालते हो आस्तीन के सापों को 

चलो उनको दूर कही छोड़ कर आते है 

कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।

 

आपस की लड़ाई में कितने रिश्ते टूट गए 

कुछ बिखर गए तो कुछ छूट गए 

चलो उन रिश्तो को जोड़कर आते है 

कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।

 

फैला कर  हर तरफ नफरत की आग 

क्या मिला कुछ तेरा घर जला 

कुछ उसका घर जला 

चलो उन शोलो को बुझाकर आते है 

कुछ इंसानियत निभा कर आते है ...।