बुधवार, 23 जून 2021

मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ ...

 


हिमखंडों से पिघल कर

पर्वतों से निकल कर

धरती  को सींचती

खेतों से निकलती

अविरल बहती रहती हूँ

क्योंकि मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ

हर पल आगे बढ़ती रहती हूँ

अपने गंतव्य की तलाश करते

सागर में मिल जाने के लिए

अपना अस्तित्व खो देने के लिए

मैं आतुर रहती हूँ  इसलिए मैं

निरंतर ही   बहती रहती हूँ .. क्योंकि

मैं नदी हूँ मैं धारा हूँ ...।

 

 

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें