शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

मां की पोटली

 


मां की पोटली 

 

एक दिन यूं ही 

बैठे बैठे खोल डाली 

मां की पोटली 

आश्चर्य हुआ पोटली 

को जब उठाया 

काफी वजन था उसमें

सोच नही पा रही थी 

की आखिर क्या है इसमें 

क्यूं भारी है ये इतना 

उत्सुकता बढ़ गई 

खोल कर देखने की

खोला तो देखा

आंखे बरस पड़ी  

उस पोटली में कुछ 

सपने थे जो टूटे हुए 

एक कोने में पड़े थे 

उनको पूरा करने की 

जद्दोजहद भी दिख रही थी 

कुछ खाबो को मैने 

जंजीर से बधे हुए देखा 

बरसो से वो बधे थे इसलिए 

वो जंग खा गए थे

अरमान तो शायद अनगिनत थे 

जो जिम्मेदारियों की 

 बोझ से दबे पड़े थे 

आंसूओ से भीगे कुछ रूमाल

रखे थे जो जाने कितनी 

 रातों में  आंखो की 

पोर को पोछने की कथा 

कह रहे थे 

सोच रही थी की इतना 

कुछ उन्होंने अपनी पोटली 

में छुपा रखा था 

इतनी भारी पोटली का

बोझ सारी जिंदगी 

कैसे उठा  रखा था

ना जाने कितनी राते 

जागकर बिता रखा था 

वो अक्सर सोचती होंगी 

की कट जायेगी ये रात भी 

और रोज एक नया सवेरा 

का  इंतजार किया होगा 

उन्होंने जीवन की कथा

को समझ कर शायद 

रोज एक कहानी लिखी होगी 

मगर ये तो जिंदगी की 

कथा थी जो रोज एक 

नही कहानी बन कर अनकही

रह गई थी ।।

 

 

 

अभी अमावस है ....

 


माना अभी अमावस है 

अंधेरा है उदासी है 

मगर तुम तो मेरे चांद हो 

तुम्हे तो आना ही होगा 

तुम्हारी पहचान ही 

रोशनी है तुम्हारा होना ही 

चांदनी है 

तुमसे ही पूर्णिमा है 

और मेरा जीवन भी 

तुमसे ही पूर्ण होता है 

तुम्हे तो आना ही होगा ...

यादें बहुत तंग करती है मुझे 

खालीपन बहुत रुलाता है 

सब आस पास है फिर 

अकेलापन बहुत सताता है 

कहना है बहुत कुछ तुमसे 

बहुत कुछ बताना है इसलिए 

तुम्हे तो आना ही होगा ... 

टूट चुकी हूं भीतर से 

खो चुकी हूं खुद को 

तेरे आने की आस में 

तेरे इंतजार में बस 

एक मुलाकात के लिए 

तुम्हे तो आना ही होगा ....

खत्म कर दो अब 

अमावस को 

बिखर जाओ बन कर 

रोशनी पूर्ण हो जाऊं मैं 

खो जाऊं तेरी चांदनी ने 

भरने मुझे अपनी बाहों में 

तुम्हे तो आना ही होगा