शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

दुख कहा बताती है स्त्री ....


 

दुख कहा बताती है स्त्री 

खुद को कहा बाटती है स्त्री 

उसके पल्लू से पूछो

उसके आंसुओ को

कितनी बार पोछा है 

उसके तकिए से पूछो

उसके दिल का दर्द 

रात भर  रोकर भी 

हर  सुबह उठकर 

मुस्कुराती है स्त्री

 

उसकी आंखों से पूछो 

कितनी रात जाग कर काटी है 

उसको लब से पूछो 

कितनी बार कुछ कहने से 

पहले थम जाती है 

कितनी बाते दिल के अंदर 

छुपा कर रह जाती है स्त्री

 

कितनी थक चुकी है वो 

रिश्तों का भोज ढोते ढोते

जाने अंजाने में कितनी 

बार उसको झुकना पड़ा 

ना चाहकर भी 

उसको ही रुकना पड़ा 

बस रिश्तों को बचाने के 

लिए खुद झुक जाती है स्त्री

 

एक पल भी उसका 

अपना कहा है सब

वक्त तो उसने दूसरो

के नाम कर दिया 

फिर भी जवाब देना 

पड़ता है कि तुमने किया क्या

किसको कहे दुख कैसे 

बयां करे खुद के अंदर 

के तूफान को 

छुपा कर हर दर्द सीने में 

कितना कुछ सह जाती है स्त्री 

खुद से ही कितना कुछ 

छुपा जाती है स्त्री ।।

 

 

 

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