बुधवार, 29 सितंबर 2021

खुद की तलाश....

खुद की तलाश

खुद को पाने की चाह 

क्यों ऐसा होता है 

तलाश खतम नही होती 

और उम्र गुजर जाती है 

सब पीछे छूट जाता है 

आस फिर भी रह जाती है 

तड़प रह जाती है 

खुद को पाने की        

आस्मा में पंख फड़फड़ाने की 

जब देखती हूँ आईना 

खुद का अक्स भी खुद से 

दूर नजर आता है 

जो देख कर मुझे 

सिर्फ मुस्कुराता है 

 रिश्तो से जकड़ा हुआ 

और बंधनो से बंधा हुआ

पाती हूँ खुद को अब तो 

एक ख्वाब की तरह 

जो आंख खुलते ही 

कही गायब हो जाता है 

रह जाता है तो मेरा 

 खोया हुआ वजूद जो 

खुद की तलाश में 

तन्हा भटक रहा है ।

 

 

खामोश भरी राते .....


 


ये खामोश भरी राते 

बहुत कुछ कहती है 

आंखे बिना नींद

आंसू बहाती रहती है 

कितनी राते सिर्फ 

करवट में बीत  जाती है 

चाहे जितनी भी कर लूं 

कोशिश मैं तेरी यादे 

दिल मे दर्द दे ही जाती है 

आती है जब भी ठंडी हवाएं 

संग उनके  तेरी खुशबू

मेरे मन मे भर जाती है 

जागती राते अक्सर      

मुझे जगा जाती है 

किससे कहूँ  दिल की दास्तां 

कुछ टूटे सपने बिखरे रिश्ते 

जो मन मे है 

वो बन कर कांटा मुझे 

चुभो जाती है 

वक्त बेवक्त कभी भी 

चली आती है तेरी यादे 

और आकर मुझे रुला  जाती है ।

 

 

चाँद और तुम.....

 



देखो ना आज भी

 चाँद वैसा ही है 

जैसा तुम छोड़ गए थे 

वही चाँदनी वही रोशनी 

सब कुछ वैसा ही है 

सिर्फ तुम्हारी कमी है 

जब यादें दिल को 

दुखाती है तो उस दिन 

चाँद भी कम चमकता है 

मुझे उदास देख कर 

वो भी उदास हो जाता है 

आकर वो मेरी खिड़की पर 

झांकता है अंदर तक 

ढूंढता है वो तुमको  

मेरे आस पास हर जगह 

कही नही मिलते तुम उसे 

उदास हो चला जाता है 

और उस रात अमावस 

की रात हो जाती है 

देख लेता है जिस दिन वो 

तुमको मेरे अंदर 

मेरे एहसासों में 

मेरी आँखों में 

चमक उठता है वो 

उस रात को फिर 

पूनम की रात हो जाती है ।

 

पुरानी डायरी के पन्ने .....

 


आज खुल गए कुछ 
पुरानी डायरी के पन्ने 
छू गयी दिल को 
कुछ पुरानी यादें 
मिल गए तुम्हारे दिए 
हुए गुलाब के फूल 
जो सुख कर और
सख्त हो गए थे
अरसा हो गया बिछड़े 
हुए पर यादें  आज भी 
एकदम ताजा है 
डायरी के पन्नों की तरह 
बस सख्त हो गयी है 
दिल की दीवार उन 
सूखे फूलो की तरह 
कुछ पन्नो पर 
पुराने नज़्म दिख गए 
जो कभी लिखे थे 
तुम्हारे लिए कुछ ग़ज़ले
भी थी जो चाहती थी कि 
मैं उन्हें गुनगुनाऊँ 
तुम्हारी  याद में 
कितनी बार कुछ लिखा 
और फाड़ दिया वो भी 
पन्ने अभी तक है 
पिछले पन्ने पर कितनी 
बार लिखा था तुम्हारा नाम 
वो आज भी वैसे ही है 
बहुत कुछ लिख कर 
तुम्हे कह नही पाई 
वो आज भी  इंतज़ार 
कर रहे है की 
तुमसे कब मिलेंगे 
देखो ना मेरा बचपना 
तुम्हारे नाम का खत जो 
बड़े प्यार से लिखा था 
वो भी डायरी में ही पड़ा है 
ये पुरानी डायरी के पन्ने भी ना 
कितना कुछ याद दिला गए ।







मंगलवार, 7 सितंबर 2021

अपने दहलीज पर बैठी ....

 


आज मैं अपने दहलीज पर बैठी 

अपने कुछ ख्वाबो को 

दम तोड़ते देख रही थी 

बाहर एक कोने में 

मेरे खोये हुए सपने  पड़े थे 

कुछ सपने आपस मे लड़ रहे थे 

कुछ पूरे ना होने से दुखी पड़े थे 

कुछ टूट चुके थे कुछ डूब चुके थे 

टूटे हुए फिर से जुड़ने की 

उम्मीद लगा रहे थे 

जो डूब चुके थे वो तैर कर 

मुझसे लिपट जाना चाहते थे 

ये उनकी मोहब्बत थी कि 

वो चाहते थे कि मैं फिर से 

उन्हें गले लगा लूँ उनको जी लूँ 

मैं अंतर्द्वंद मै फसी हूँ कि

ये कैसे  संभव  है 

मैं तो सिर्फ उनको देख सकती हूँ 

उनको जीने का हक़ कहा है 

क्योकि कुछ बेड़ियों ने मुझे

बांध रखा है कुछ रिश्तो ने 

मुझे  जकड़ रखा है 

मैं अपनी ड्योढ़ी से बाहर नही

जा सकती उन सपनो के लिए 

गम नही की कुछ सपने टूट गए 

अफसोस नहीं जो कुछ अपने छूट गए 

कल फिर आएगा नए सपने भी आएंगे 

मगर मैं अपनी दहलीज पर बैठी 

फिर से उनको सिर्फ देखती ही रहूंगी।

 

 

 

स्मृतियाँ...

 


स्मृतियाँ...

 

फूलो सी तेरी स्मृतियाँ

अक्सर कांटे बन जाती है
दिन तो कट जाता पर 

राते नागिन बन जाती है..|| 

दोष नहीं है  किसी का

जीवन  है एक सयोंग
परिवर्तन का चक्र न रुकता,

 कभी मिलन है कभी वियोग
सिमटी दूरी खुलकर 

सहसा अंतहीन बन  जाती है...  ||

किसे पता था शीश- महल के

 टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे
अरमानो की चिता  जलेगी

सपने बिखर जायेंगे,
तेरी आँखों की बूंदे 

मेरी पीड़ा बन जाती है..... ||

नहीं चाहती स्मृतियों को

मन के आँगन में बिठलाऊँ
नहीं चाहती आज को अपने 

कल के कांटो से बंधवाऊँ 

फिर भी मेरी हार  सदा 

जीत तेरी बन जाती हैं।..||

प्रीत सदा दुःख देती है

क्या यही सत्य है बोलो प्रिय
छोड़ो मुझको रोने दो पर 

तुम न आंसूं घोलो प्रिय
आंसूं, पीड़ा, प्यार सिमट कर 

प्रेम कहानी बन जाती है।..