गुरुवार, 2 सितंबर 2021

जर्जर पेड़ .....

 


मैं उस पेड़ की तरह हो गयी हूँ

जो अंदर से जर्जर हो चुका है

वो खड़ा तो है मगर सिर्फ दुसरो

के लिए खामोश होकर

मेरा वजूद उस पेड़ के पत्ते की

तरह गिर कर मिट्टी में मिल चुका है

मेरे दहलीज़ पर पेड़ की कुछ शाखे

झूल रही है जो सहारा लेकर

दूसरे के सहारे ही खड़ी है

अंदर से  सूखा हुआ यह पेड़

ऊपर से हरा है ताकि दूसरों को

छाव दे सके

उसकी शाखे कभी कभी

मुझे जकड़ लेती है

और एहसास कराती है

की उसमे और मुझमे फर्क क्या है

वो भी अंदर से जर्जर और

मैं भी जर्जर उसको भी

अंत तक छाव देना है

मुझे भी ज़िम्मेदारिया निभानी है

जर्जर और खोखला होकर भी

हरा भरा दिखना है

भले ही मैं एक दिन ढह जाऊं

ज़िम्मेदारियों के बोझ के नीचे दब जाऊं

लेकिन उस जर्जर पेड़ की तरह

अडिग रहना अंतिम सांस तक

चाहे कितनी भी बड़ी आंधी आ जाये ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें