गुरुवार, 2 सितंबर 2021

कप और केतली.....





 एक दिन कप बहुत इठला रही थी 

मन  ही मन कुछ शर्मा रही थी 
तभी केतली ने पूछा 
क्या हुआ क्यों मुस्कुरा रही हो 
किस  बात पर इतरा रही हो 
कप ने कहा तुम्हे क्या पता लोग 
मुझपर मरते है मुझे संभाल कर छुते  है 
वो मुहब्बत में मुझे होठो से चूमते है 
और तुम खुद को देखो कौन 
तुम्हे पूछता है कौन भला 
दिन रात पकते रहते हो 
केतली मुस्कुराई और बोली 
अरे! तुम क्या सोच रही हो 
किस गलतफहमी में जी रही हो 
मैं तो इश्क करता  हूँ चाय से  
 इसलिए दिन रात जलता हूँ 
उसके लिए बस पकता रहता हूँ 
जब तक तुम खाली हो 
तुम्हारी औकात ही क्या है 
जब तक मैं चाय से ना भर 
तब तक तुम सिर्फ एक शून्य हो 
एक खाली कप हो बस,
मैं चाय को खुद से अलग 
करता हूँ तुम्हारा खालीपन 
दूर करने के लिए,
ताकि लोग चाय का लुत्फ़ 
उठा सके और अपनी 
जिंदगी जी सके |  

 




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें