मंगलवार, 7 सितंबर 2021

अपने दहलीज पर बैठी ....

 


आज मैं अपने दहलीज पर बैठी 

अपने कुछ ख्वाबो को 

दम तोड़ते देख रही थी 

बाहर एक कोने में 

मेरे खोये हुए सपने  पड़े थे 

कुछ सपने आपस मे लड़ रहे थे 

कुछ पूरे ना होने से दुखी पड़े थे 

कुछ टूट चुके थे कुछ डूब चुके थे 

टूटे हुए फिर से जुड़ने की 

उम्मीद लगा रहे थे 

जो डूब चुके थे वो तैर कर 

मुझसे लिपट जाना चाहते थे 

ये उनकी मोहब्बत थी कि 

वो चाहते थे कि मैं फिर से 

उन्हें गले लगा लूँ उनको जी लूँ 

मैं अंतर्द्वंद मै फसी हूँ कि

ये कैसे  संभव  है 

मैं तो सिर्फ उनको देख सकती हूँ 

उनको जीने का हक़ कहा है 

क्योकि कुछ बेड़ियों ने मुझे

बांध रखा है कुछ रिश्तो ने 

मुझे  जकड़ रखा है 

मैं अपनी ड्योढ़ी से बाहर नही

जा सकती उन सपनो के लिए 

गम नही की कुछ सपने टूट गए 

अफसोस नहीं जो कुछ अपने छूट गए 

कल फिर आएगा नए सपने भी आएंगे 

मगर मैं अपनी दहलीज पर बैठी 

फिर से उनको सिर्फ देखती ही रहूंगी।

 

 

 

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