गुरुवार, 2 सितंबर 2021

कृष्ण व्यथा.....

 


हे राधा तेरा  दर्द तो सबने जाना

मुझ कृष्ण को किसने पहचाना

बिछड़ कर अगर तूने जिया

तो विरह हलाहल मैने भी पिया

कैसे कहूँ मैं तुझसे राधिके

कैसे तुम बिन जी पाता हूँ

क्योकि मैं ईश्वर हूँ

इसलिए नही रो पाता हूँ ।

 

सुन लो मेरी विनती कि

 क्या  तुम अब भी

मुझसे मिलने

यमुना के तीरे आओगी

क्या तुम फिर से

 वही रास रचाओगी

एकबार फिर से हो जाओ मगन

चलो मैं फिर वही धुन बजाता हूँ

क्योकि मैं ईश्वर हूँ

इसलिए नही बोल पाता हूँ ।

 

एक बार फिर से ले चलो मुझे

उसी कंदब की छाव में

जहा खोई मेरी राधा

खोई मेरी बांसुरी की धुन

खोये मेरे सखा मित्र

खोई तेरी पायल की रुनझुन

पहले प्रीत के पहले क्षण को

क्या तुम फिर से याद दिलाओगी

क्योकि मैं इध्वर हूँ

इसलिए व्यथा  नही कह पाता  हूँ ।

 

सोचो तुम क्या होगी मेरी व्यथा

किस असमंजस में मैं जी पाता हूँ

तुम बिन ना तो जी पाता हूँ

देख रुक्मणि को ना ही मैं मर पाता हूँ

क्योकि मैं ईश्वर हूँ इसलिए

 सब दुख सह जाता  हूँ ।

 

 

 

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