ये बेटियाँ भी अजीब होती है
पल में रोती है पल में खुश होती है
ये बेटियाँ भी ....
जब तक घर मे होती है
चिड़िया जैसी चहकती रहती है
फूलो की तरह महकती रहती है
ये बेटियाँ भी ....
एक डाल से टूटकर दुसरे डाल पर
बसने के लिए सब रिश्ते तोड़ जाती है
बाबुल का आंगन छोड़ जाती है
ये बेटियाँ भी ....
एक नए तने से बांध कर
एक नई जमीन पर
एक नया घर बना लेती है
ये बेटियाँ भी ....
एक नए परिवेश में जाकर
भूल कर अपने वजूद
खुद को तलाशते हुए फिर से
अपना वजूद बना लेती है
ये बेटियाँ भी ....
अगर कभी याद आये अपनो की
उन छुटे रिश्तो और खिलौनों की
माँ के आँचल की बाबुल के आँगन
की तो उनको याद करके
चुपके से आंसू बहा लेती है
ये बेटियाँ भी ...
हो चाहे जितना भी दर्द दिल में
भरी हो आंखे चाहे कितनी भी
सामने आकर सबके वो जाने कैसे
मुस्कुरा लेती है.....
ये बेटियाँ भी अजीब होती है ..|
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