सोमवार, 13 अप्रैल 2020

मैं और तुम






मैं और तुम बस यही है दुनिया 

दो औंस की बूंदे थे 

मिलकर एक हो गए मैं और तुम 

एक रास्ते के दो मुसाफिर 

मंजिल पर आकर मिले 

जिंदगी जिधर ले गयी चल दिए मैं और तुम  

दुःख  का सागर हो या  ग़म का दरिया 

जो भी मिला सह गए मैं  और तुम 

ख्वाबों को सजाया मिलकर 



उसको मिलकर जी गए मैं और तुम 

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