बुधवार, 8 जुलाई 2020

कैसा वक्त आया हैं




ये कैसा वक्त आया हैं 

लिखने बैठती हूँ  तुम्हे सोचकर 

पाती हूँ  की तुम  तो हो ही नहीं 

कही दूर एक खोये  लम्हे की तरह 

मेरे समय  से बिलकुल परे हो 

जो अब नजर भी नहीं आता है 

अब सिर्फ यादें है और कुछ एहसास हैं 

कितना सूंदर सफर था जब तुम साथ थे 

लगता था  कभी न मिटने वाली 

एक कहानी बन गए हो तुम 

तेरी मासूम सी निगाहों को

मन करता था बस देखती रहूँ 

चंचल सा तेरा मन 

बस तुझे निहारती रहूँ ....लेकिन  

खामोश रही मैं की कभी तो 

समझो मेरी ख़ामोशी को 

कभी तो पढ़ो मेरी आँखों को 

मेरा बेदाग मन बस तुम्हे चाहता रहा 

तुम्हे देखता रहा, तुम्हे पूजता रहा 

मगर तुम पड़े रहे एक खाली पन्ने  की तरह 

जिस पर चाह  कर भी मैं कुछ न लिख सकी

मेरे शब्द खाली  रह  गए तेरी चाहत में 

अब तो सिर्फ तेरी यादे है और 

कुछ एहसास है जो मेरे साथ है 



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