रविवार, 24 फ़रवरी 2019

बहुत कुछ






कुछ ऐसे फस गए जिंदगी की क़शमक़श में
कहने को कुछ रहा सुनने को
रिश्तो की उलझन कुछ ऐसी गयी
सिमट कर रह गया सब कुछ पर 
बिखर भी गया बहुत कुछ 
सोचने का वक्त भी मिला
पर गुजर गया बहुत कुछकभी खयालो में दिन  गुजर जाते थे
आज एक लम्हा भी भारी  लगता है 
 और उजड़ गया तुम बिन बहुत कुछ
 करते रहे इन्तजार तुझे भूल जाने का
मगर तुम याद आते रहे और
भूल गया बहुत कुछ
राहो में तुझे ढूंढते रहे, तलाशते रहे
तू मिला ख़त्म हुई तेरी तलाश
पर  बिछड़ गया बहुत कुछ 


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