गुरुवार, 21 जून 2018

यादों का सिलसिला





कुछ भूली बिसरी यादों को देखो ....
वो जो एक सिलसिला बन कर रह गयी है,
जब भी आती है रुला कर जाती है,
कुछ जख्म को ताजा कर जाती है.... 
कुछ जख्म पर मरहम लग जाती है, 
कभी मुस्कराहट दे जाती है..... तो 
कभी आंसूं भर जाती है..... 
कभी  दर्द बन कर कांटे सी चुभती है 
तो.... कभी फूल बन कर खुशबु भर जाती है 
ये यादों का सिलसिला है.....
जो रुकने का नाम नहीं लेता ....  
चलता रहता है..... मेरी साँसों के साथ 
मेरी धड़कनो के साथ......  
ये कभी न ख़त्म होने वाला 
मेरी यादों  का सिलसिला है.......!   

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