शनिवार, 7 सितंबर 2019

मेरी बिंदिया







मेरी बिंदिया फिर चमक उठी थी 
तूने तो सिर्फ दस्तक दी थी 
साँसे कुछ थमी हुई थी 
फिर क्यों मैं  यु ही चहक उठी थी 
तुलसी का बिरवा आँगन में 
दिए जलाकर ड्योढ़ी पर 
तेरी यादो में खोयी थी 
फिर सहसा क्यों ठिठक पड़ी थी 
इतना प्यार समेटे कब से 
राह में आँखे बिछी हुई थी 
कुछ आंसू मुस्कान  में लिपटे 
आशा गहरी मिलन की 
पाकर अपने प्रीतम को 
अब दिल की बगिया महक उठी थी 
मेरी बिंदिया फिर चमक उठी थी 

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