बुधवार, 6 अप्रैल 2022

तुम्हारे आंगन में .....

 


कभी कभी यूँ ही बैठे बैठे 

मन पहुच जाता है तुम्हारे 

पास तुम्हारे दामन में 

तुम्हारे आंगन में 

कभी सोचती हूँ 

बन चिड़िया चहक 

उठती तेरे आंगन में 

कोई फूल बन 

महक उठती 

तेरे बगिया मे

सच पूछो तो 

हम जुदा ही नही हुए 

एक दूसरे से 

ना जाने कितने 

जाने अनजाने पल 

में यादें आती रहती हैं 

ना हम दूर हुए 

ना हमारा एहसास ...।।

 

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