गुरुवार, 2 अगस्त 2018

खामोशियो की दास्ताँ








क्या सुनाऊ मै अपनी खामोशियो की दास्ताँ 
कितना कुछ खोया है खामोश रहकर 
सताया है मुझे मेरी ही  खामोशियो ने 
सुना था दिल की बातें  खामोश बयां होती है 
इसीलिए  मै  भी खामोश रही उसकी 
खामोशियों  के साथ.........  
उसकी ख़ामोशी मुझे खामोश कर गयी  
कहती रही मै  उससे  यूँ खामोश रहकर 
मुझे सजा मत दो 
कुछ तो अपनी लफ़्जो में बयां कर दो 
अगर तुम अपनी ख़ामोशी को लफ्ज़ दे 
पाते  तो मेरी ख़ामोशी भी समझ जाते 
जब भी तेरी याद आती है, 
मेरी आँखे नम कर जाती है 
तेरी ख़ामोशी मुझे तन्हा कर जाती हैं
खामोश रह गए तुम और मै 
और खो गया हमारा प्यार 
हमारी खामोशियों में...... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें