सोमवार, 6 अगस्त 2018

वो शाम कभी नहीं आती





कट जाती है हर शाम मेरी 
यूँ ही तेरे इन्तजार में  कोई
तो ऐसी शाम हो जिसमे तुम आओ  
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

बैठे हो हम हाथो में हाथ डालकर 
देखे डूबते सूरज को 
खो जाये शाम की आगोश में 
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

किसी शाम हम करते रहे बातें 
और वक्त बीत जाये ऐसे कि 
सुबह से शाम हो जाये
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

किसी एक शाम  दे दो तुम मुझे इज़ाज़त 
अपने पहलू में बैठने की 
आँखों से दिल में उतरने की 
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

किसी एक सुहानी शाम को 
गुनगुनाऊं मै तुम्हारे प्यार के गीत 
जी लूँ तुम्हारे साथ 
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

तुम्हारे एक शाम की इंतज़ार में 
न जाने कितनी मेरी शाम गुजर जाती है 
मैं  सोचती रहती हूँ  कि भर दूँ मैं 
अपने प्यार के  रंग से 
तुम्हारी किसी एक शाम को 
मगर वो शाम कभी नहीं आती 

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