सोमवार, 12 जुलाई 2021

एक खत.....

 



सोचा एक खत लिख डालू

सनम के नाम का 
बया कर डालू  क्या हे
 हाल मेरे दिल का  
मगर क्या लिखू कैसे लिखू 
उसे  क्या सम्बोधन दूँ 
कुछ समझ नहीं  आया 
बस लिख डाला चार शब्द 
" मेरा प्यार मेरी जिंदगी हो तुम 
मेरी सांस, मेरी धड़कन हो तुम 
तुम हो तो मैं  हूँ, मैं तुमसे ही हूँ "
लिख कर बंद दिया लिफाफे को 
मगर ये क्या कहा भेजू   कैसे भेजू 
तेरा पता तो मालूम ही नहीं था 
मन ही मन मैं  मुस्कुराई 
सोच कर हसी भी आयी 
मेरा प्यार कितना मासूम था 
इसी मासूमियत के साथ 
मैंने  बंद करके रख दिया लिफाफे को 
बंद कर दिया एहसास को 
मचलते ज़ज्बातो को 
और भुला दिया  अपने मुहब्बत को 
हमेशा हमेशा के लिए 
पैग़ाम  बस पैग़ाम ही रह गया 
हाल दिल का दिल में ही रह गया | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें