शनिवार, 21 अगस्त 2021

मेरी आंखे .....

 




कल रात बरसात बहुत  हुई 

बादल बरसा और नैन भी 

कुछ बोल रही थी मेरी आंखे 

बारिश में खुद को भिगो 

रही थी मेरी  आंखे 

नींद बहुत दूर कही छुप कर 

कोने में खड़ी थी 

उनको दूर से ही घूर रही 

थी मेरी आंखे 

नींद को कैसे आने दूं मैं 

इंतज़ार जो तुम्हारा है 

कही आंख लग गयी तो 

ऐसा कुछ कह रही थी मेरी आंखे

बेचैनी में कट रही थी रात 

तेरे दीदार को तरसे है बहुत 

कर ले शायद तेरा दीदार 

यही सोच कर जाग रही थी मेरी आंखे 

तुम आ जाओ तो एक नजर 

 भर देख  लूँ तुमको 

पा लूँ कुछ सुकून जी लूँ कुछ पल 

वरना ऐसा न हो जाये कि  इंतज़ार 

में ही पथरा ना जाए मेरी आँखें ।

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें