रविवार, 13 सितंबर 2015

खामोशी ......और खामोशी |

                                                              "खामोशिया  ...."

खामोशियों मे डूबी ये जिंदगी ,महफिल को तरस गयी है ,

याद तुझे करते -करते मेरी आंखे बरस  गयी है |

तेरी यादों का मौसम कभी न खत्म होने वाला मौसम है ,

तेरे ना  होने का एहसास ,दिल को सताता रहता है ,

खामोश रह कर तुझे ही याद करता है |

तेरी हर आहट मेरी खामोशी को तोड़ती है,

मगर फिर वही आहट मेरी खामोशी बन जाती है |

और फिर एहसास होता है तुम तो हो ही नहीं ,कही नहीं हो .... 

और फिर मेरी जिंदगी खामोशियो  मे डूब जाती है | 

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